ISRO Satellite Operation Sindoor: भारत रक्षा प्रणाली के लिए सैटेलाइट की क्रांतिकारी भूमिका |
क्यों बना Operation Sindoor भारत की सैन्य शक्ति का अहम पड़ाव
भारत की सुरक्षा व्यवस्था में अंतरिक्ष तकनीक का योगदान पहले से कहीं ज्यादा अहम हो चुका है। ISRO Satellite Operation Sindoor इसी की जीती जागती मिसाल है। 7 मई 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद जो सैन्य कार्रवाई की गई, उसमें ISRO के 10 से ज्यादा सैटेलाइट्स ने रियल-टाइम इंटेलिजेंस, संचार और नेविगेशन सपोर्ट देकर भारतीय सेना को निर्णायक बढ़त दिलाई। इसने दिखा दिया कि स्पेस टेक्नोलॉजी अब आधुनिक युद्ध का सबसे बड़ा हथियार बन गई है।
सबसे बड़ा बदलाव : ISRO सैटेलाइट इंफ्रास्ट्रक्चर की खासियतें
हाई-रिज़ॉल्यूशन पृथ्वी अवलोकन (Cartosat, RISAT सीरीज): दोनो सैटेलाइट्स ऑप्टिकल और रडार इमेजरी प्रदान करते हैं, जिससे सीमाओं, दुर्गम क्षेत्रों व दुश्मन गतिविधियों पर लगातार नजर रखी जाती है।
GSAT-7 व GSAT-7A उपग्रह: सेना, नौसेना और एयरफोर्स के लिए सुरक्षित, एनक्रिप्टेड कम्युनिकेशन संभव बनाते हैं।
NavIC नेविगेशन: मिसाइल, ड्रोन, फाइटर जेट और जमीन बलों को सटीक पोजिशन एवं गाइडेंस मिलती है।
ई-मेल, पोस्ट स्ट्राइक असेसमेंट, रियल टाइम टार्गेटिंग: ऑपरेशन के दौरान त्वरित डेटा साझा और टारगेट वैलिडेशन से सटीक कार्रवाई।
ऑपरेशन सिंदूर : ISRO सैटेलाइट्स की निर्णायक भूमिका
ऑपरेशन के दौरान ISRO ने कैसे मदद की?
400 से अधिक ISRO वैज्ञानिकों की टीम 24×7 डेटा, इमेजरी और कम्युनिकेशन सपोर्ट दे रही थी।
Cartosat सीरीज से दुश्मन के संरचनाओं, बंकरों और मूवमेंट को पहचाना गया।
RISAT की ऑल-वेदर SAR टैक्नोलॉजी ने खराब मौसम में भी जानकारी देना संभव बनाया।
GSAT की मदद से नेवी व एयरफोर्स ने बड़ी सुरक्षा के साथ टारगेटिंग और कम्युनिकेशन किया।
NavIC और बाहरी कमर्शियल सोर्स (जैसे Maxar) के डेटा से मिशन प्लानिंग को मजबूती मिली।
सैटेलाइट टेक्नोलॉजी से क्या-क्या संभव हुआ?
सटीक टारगेट आइडेंटिफिकेशन, सीमा पार मूवमेंट ट्रैकिंग।
आतंकवादी इन्फ्रास्ट्रक्चर का रियल-टाइम मूल्यांकन और निष्कासन।
पोस्ट-स्ट्राइक डैमेज असेसमेंट, जिससे सेना रणनीति तय कर सकी।
सेना की हर मूविंग यूनिट और जहाज को लाइव नेविगेशन सपोर्ट।
रक्षा में स्पेस टेक्नोलॉजी का भविष्य
क्यों जरूरी है स्पेस अवसंरचना का विस्तार?
भारत सरकार 2035 तक अंतरिक्ष में खुद का ‘स्पेस स्टेशन’ और 2040 तक भारतीय को चंद्रमा पर भेजने का लक्ष्य रख चुकी है।
संवेदनशील सीमाओं की निगरानी के लिए 78 से ज्यादा सैन्य सैटेलाइट की योजना।
इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर, एंटी-सैटेलाइट (ASAT) हथियार व स्पेस में डाटा सुरक्षा पर राष्ट्रीय सैन्य स्पेस डोक्ट्रिन।
निजी कंपनियों का सहयोग लेकर Low-Earth, Medium-Earth व GEO सभी लेयर में सैटेलाइट नेटवर्क बढ़ाया जा रहा है।
क्या हैं नई संभावनाएं?
SPADEX मिशन के जरिये ऑर्बिट में सैटेलाइट रिपेयर व लॉजिस्टिक्स।
कृत्रिम उपग्रहों के बीच स्वत: डॉकिंग एवं डेटा शेयरिंग।
युद्ध की स्थितियों में ऑटोमैटिड एसेट उपयोग—मानव हस्तक्षेप कम, त्वरित निर्णय व कार्रवाई।
भारतीय सेना की आंख, कान और ताकत: ISRO
ISRO का सहयोग क्यों है अनमोल?
देश की सीमाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए विश्व स्तरीय समस्या-समाधान।
डिफेंस स्पेस एजेंसी, इंटीग्रेटेड स्पेस सेल जैसे ढांचे — तीनों सेनाओं के बीच तालमेल और इंटीग्रेशन बढ़ाते हैं।
सैटेलाइट टेक्नोलॉजी के मामले में भारत की आत्मनिर्भरता।
“स्पेस-ड्यूल यूज” टेक्नोलॉजी — नागरिक और सैन्य दोनों क्षेत्रों में लाभ।
Disclaimer: यह लेख केवल सार्वजनिक व आधिकारिक स्रोतों पर उपलब्ध जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। इसका उद्देश्य सूचना देना है, सैन्य रणनीति या ऑपरेशन विशेष के गोपनीय तथ्यों का खुलासा नहीं करना। किसी भी प्रकार की संवेदनशील जानकारी लेख में शामिल नहीं है।
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